ईद-उल-अज़हा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार इस्लामिक महीने धुल-हिज्जा की 10वीं तारीख को मनाया जाता है और हज यात्रा के समापन का प्रतीक है। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कतर, जॉर्डन, कुवैत और अन्य खाड़ी देशों के साथ-साथ कनाडा, यूके और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में यह आज पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है।
भारत में, ईद-उल-अज़हा 17 जून 2024 को मनाई जाएगी, जो सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों से एक दिन बाद है। इसका कारण चाँद देखने की प्रक्रिया है, जो हर देश में अलग-अलग हो सकती है। भारत में 7 जून को चाँद दिखाई देने की वजह से बकरीद 17 जून को मनाई जाएगी। इस अंतरराष्ट्रीय त्योहार की सबसे अद्वितीय विशेषता इसकी तारीख की घोषणा में चंद्रमा के दर्शन की भूमिका है, जो इसे वैश्विक स्तर पर विभिन्न जगहों पर एक दिन या दो दिन के अंतर से मनाने का अवसर देता है।
ईद-उल-अज़हा का महत्व और परंपराएँ
ईद-उल-अज़हा का मुख्य आकर्षण कुरबानी की रस्म है। इस दिन, मुसलमान एक जानवर, आमतौर पर बकरी, भेड़ या गाय की कुरबानी देते हैं। इस कुरबानी का महत्व इस्लामी ग्रंथों में वर्णित क़िस्से पर आधारित है, जिसमें हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म का पालन करते हुए अपने बेटे हज़रत इस्माइल की कुरबानी देने की ठानी थी। हालांकि, अल्लाह ने उनके बेटे की जगह एक जानवर की कुर्बानी को स्वीकार किया था।क़ुर्बानी का मांस तीन बराबर हिस्सों में बाँटा जाता है: एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को और तीसरा हिस्सा खुद के परिवार के लिए रखा जाता है। इस परंपरा के माध्यम से, इस्लाम धर्म समानता, परोपकार और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।
त्योहार के अवसर पर विविध आयोजन
ईद की नमाज का आयोजन मस्जिदों और ईदगाहों में होता है, जहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं। नमाज के बाद, लोग एक-दूसरे को ईद मुबारक कहते हैं और गले मिलकर प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं। बच्चे नए कपड़े पहनते हैं और खुशी-खुशी ईदी प्राप्त करते हैं, जोकि उन्हें बड़ों द्वारा दी जाने वाली राशि या उपहार होता है।
घर-घर में विभिन्न पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें मांसाहारी व्यंजन विशेष रूप से शामिल होते हैं। बिरयानी, क़ोर्मा, नहारी, शीर खुरमा और सेवई जैसे व्यंजन इस अवसर को और भी विशेष बनाते हैं। परिवार और दोस्तों के बीच ये व्यंजन बांटे जाते हैं, जिससे सामाजिक मेलजोल और आपसी रिश्ते और मजबूत होते हैं।
सऊदी अरब और खाड़ी देशों में उत्सव
सऊदी अरब, जोकि इस्लाम का जन्मस्थान है और जहाँ मक्का और मदीना स्थित हैं, में बकरीद का महत्व बेहद खास है। यहाँ हज यात्रा के समापन के साथ ही बकरीद का त्योहार और भी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। हज यात्रा में शामिल लोग इस्लामी धर्म के पाँच स्तंभों में से एक का पालन करते हुए मक्का पहुँचते हैं और वहीं पर इस महत्वपूर्ण त्योहार को मानते हैं।
यूएई, कतर, और अन्य खाड़ी देशों में भी बकरीद का व्यापक स्तर पर जश्न मनाया जाता है। यहाँ पर विभिन्न समाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोगों के बीच भाईचारे और एकता की भावना को प्रकट किया जाता है। विभिन्न नगर निगमों द्वारा बकरीद की तैयारियों के तहत सफाई, पशु क्रय केंद्रों की व्यवस्था और सुरक्षा संबंधित इंतजाम किए जाते हैं।
पश्चिमी देशों में उत्सव
कनाडा, यूके, और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में भी मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं और वहाँ भी बकरीद का आयोजन पूरे जोश और उल्लास के साथ किया जाता है। मुस्लिम समुदाय अपने स्थानीय मस्जिदों में इकट्ठे होकर नमाज अदा करते हैं और उसके बाद सामुदायिक भोज और परंपरागत क़ुर्बानी की रस्में निभाते हैं।
इन देशों में, कई बार स्थानीय प्रशासन और नगर निगमों द्वारा विशेष व्यवस्थाएँ की जाती हैं ताकि मुसलमान अपने त्योहार को बिना किसी कठिनाई के मना सकें। अधिकतर बड़े शहरों में मस्जिदों और इस्लामिक केंद्रों द्वारा विशेष आयोजन किए जाते हैं, जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इस्लामी परंपराएँ और राशनलता का प्रदर्शन किया जाता है।
भारत में बकरीद का महत्व
भारत में, जहाँ सदियों से विभिन्न धर्म और संस्कृतियों का मेल रहा है, इस्लामी त्योहार बकरीद भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत ईदगाहों और मस्जिदों में नमाज अदा करने से होती है, जिसके बाद लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। विभिन्न शहरों और गाँवों में खास तौर पर मांसाहारी खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं और लोगों को आमंत्रित कर त्योहार की खुशियों में शामिल किया जाता है।
भारत में बकरीद का उत्सव एक दिन की घटना नहीं होती, बल्कि त्योहार के पहले और बाद के दिनों में भी समाजिक और धार्मिक गतिविधियाँ होती हैं। गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हुए, ये त्योहार एकता और भाईचारे का संदेश देता है। विभिन्न राज्यों में, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा भी इस त्योहार पर विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं, ताकि लोग शांतिपूर्वक और सुरक्षित तरीके से अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें।
बकरीद और इसका प्रभाव
आधुनिकीकरण के युग में, भले ही तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति ने मानव जीवन को सरल और सुविधाजनक बना दिया हो, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार आज भी लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बकरीद जैसे त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होते हैं, बल्कि समाजिक एकता और परोपकार के मूल्यों को भी प्रकट करते हैं।
भारत, जहाँ विभिन्न धर्म और संस्कृतियाँ सह-अस्तित्व में हैं, वहाँ बकरीद का त्योहार एक खास महत्व रखता है। यह त्योहार धार्मिक सद्भाव, भाईचारे और एकता का प्रतीक है। इसके माध्यम से लोग एक दूसरे के साथ अपने खुशियों को साझा करते हैं और सामाजिक संबंधों को मजबूत करते हैं। इस्लामिक इतिहास और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के माध्यम से, बकरीद हमें त्याग, विश्वासीदी और अल्लाह की आज्ञा पालन के महत्व को समझने का अवसर देती है।
ईद-उल-अज़हा का त्योहार सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग के लिए एक संदेश है कि समाजिक और धार्मिक कदमों के माध्यम से हम एक बेहतर और शांतिपूर्ण विश्व की निर्माण कर सकते हैं। इस मौके पर दानपुण्य और सामाजिक कार्यों के माध्यम से लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं, जिससे समाज में समानता और भाईचारे की भावना और भी प्रबल होती है।
इस तरह, हर साल बकरीद का त्योहार हमें ये याद दिलाता है कि हमारी धार्मिक और समाजिक परंपराएँ एक महत्वपूर्ण योगदान करती हैं एक शांति और समानतापूर्ण समाज के निर्माण में। इस्लामिक मान्यताओं और परंपराओं के माध्यम से, हम एक दूसरे के साथ अपने खुशियों और सुख-दुख को साझा करते हुए एक बेहतर और भयमुक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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