घटना की पृष्ठभूमि और पुलिस का त्वरित कदम
25 सितंबर को बादगाम के बीरवह थाना क्षेत्र में दो लड़कों और एक लड़की के साथ यौन शोषण की गंभीर घटना घटी। स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद बीरवह पुलिस थाने ने FIR क्रमांक 134/2025 दर्ज किया। FIR में भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 65(2) व 352(2) के साथ साथ बाल यौन शोषण रोकथाम अधिनियम (POCSO) की धारा 5/6 को भी लागू किया गया।
शुरुआती जांच में पता चला कि आरोपी एक बार नहीं, बल्कि कई बार इस प्रकार के अत्याचार कर चुका था, जिससे वह एक बदगाम का सीरियल अपराधी साबित हुआ। पुलिस ने शिकायत दर्ज होते ही आरोपी को घंटों के भीतर पकड़ लिया, जिससे इस दुष्कर्म के पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ी।

फ़ोरेंसिक, मेडिकल जांच और आगे की कार्रवाई
हिरासत में लिए जाने के साथ ही अपराध स्थल को फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) की टीम ने सुरक्षित किया। टीम ने यौन शोषण के सबूत, जैसे कि शरीर पर ऐसे निशान और DNA नमूने, इकट्ठा कर लैब में भेजे। इसी दौरान पीड़ित तीनों बच्चों का तुरंत मेडिकल परीक्षण किया गया, जिससे शारीरिक नुकसान एवं संभावित संक्रमण का पता चलता है। इन सभी कदमों को पुलिस ने “प्राथमिकता” के आधार पर तेज़ी से लागू किया।
पुलिस ने बताया कि जांच का हर पहलू—साक्षी दिखाना, ड्रेसिंग रूम फुटेज, अथवा स्थानीय लोगों की गवाही—सतर्कता से देखा जाएगा। फिर उसी आधार पर अभियोजन पक्ष को मजबूत केस फाइल तैयार करने की दिशा में काम होगा।
बादगाम पुलिस ने यह रुख साफ़ कर दिया कि बाल शोषण के मामलों में उनकी नीति ‘शून्य सहनशीलता’ है। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि किसी भी प्रकार की ऐसी घटना को तुरंत रिपोर्ट किया जाए, ताकि अपराधी को अलग-थलग किया जा सके और तुरंत न्याय प्रक्रिया शुरू हो। इस मामले में दर्शाई गई त्वरित कार्रवाई, पुलिस के इस मुद्दे पर गंभीर रुख का प्रमाण है।
टिप्पणि
न्याय की तीव्र गति को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने 'तीव्रता' को शब्दशः लिया है; अर्थात्, अपराधी के हाथों से गति को भी मानो तेज़ कर दिया हो।
हालाँकि, यह सवाल अभी भी बना रहता है कि क्या यह तेज़ी अभूतपूर्व है या बस एक और सामान्य प्रशासनिक दौड़ है।
विचार करने योग्य बात यह है कि जल्दबाजी में कभी-कभी प्रक्रिया का सार खो जाता है, पर यहाँ ऐसा लगता है कि सार को ही पकडना मुख्य उद्देश्य रहा।
समग्र रूप से, यह केस एक प्रकार का सामाजिक प्रयोग बन गया है, जहाँ पुलिस की त्वरित कार्रवाई को ‘जैसे ही सोचा वैसा’ कहा जा सकता है।
बादगाम में इस त्रासदी के प्रति पुलिस की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है और यह दर्शाती है कि बच्चों के संरक्षण में उनका दृढ़ संकल्प कार्य में परिलक्षित हो रहा है।
ऐसे मामलों में नागरिकों की सतर्कता और समय पर सूचना देना ही न्याय के मार्ग को तेज़ बनाता है।
हर तेज़ी के पीछे कभी‑कभी अनदेखी की बुनियाद छिपी रहती है।