सीबीडीटी ने 25 सितंबर 2025 को जारी किए गए प्रेस रिलीज़ के जरिए आयकर वर्ष 2025‑26 (पिछला वर्ष 2024‑25) के लिये टैक्स ऑडिट रिपोर्ट की फ़ाइलिंग समय‑सीमा को एक महीने आगे बढ़ाया। पहले 30 सितंबर तय थी, अब इसे 31 अक्टूबर 2025 कर दिया गया है। इस बदलाव का उद्देश्य पेशेवर संगठनों और कई हाई कोर्ट के फैसलों द्वारा उजागर की गई मुश्किलों को कम करना है।
बढ़ाई गई डेडलाइन का मुख्य कारण
कई चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्मों और व्यापार संघों ने लगातार यह बताया कि बाढ़, सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई क्षेत्रों में व्यवसायिक गतिविधियाँ रुक गईं। इससे ऑडिट डेटा इकट्ठा करने, इन्क्वायरी करने और रिपोर्ट तैयार करने में काफी देरी हुई। राजस्थान और कर्नाटक के हाई कोर्ट ने भी इसी तरह की एक्सटेंशन की आवश्यकता को स्वीकार किया था, जिससे केन्द्रीय स्तर पर यह कदम उठाना अधिक तार्किक लगा।
सीबीडीटी ने यह स्पष्ट किया कि ई‑फाइलिंग पोर्टल में कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है और टैक्स ऑडिट रिपोर्ट अपलोड करने की प्रक्रिया पहले जैसी ही सुगम है। अब माना जा रहा है कि अतिरिक्त एक महीने से कंपनियों और पेशेवरों को अपने डेटा को व्यवस्थित करने, त्रुटियों को सुधारने और अंतिम रूप देने का पर्याप्त समय मिलेगा।

कौन‑कौन को फाइल करना पड़ेगा और क्या तैयारी करनी चाहिए
टैक्स ऑडिट रिपोर्ट जमा करने का नियम उन सभी करदाताओं पर लागू होता है जो सेक्शन 139(1) के उपखंड (a) के तहत आते हैं। आम तौर पर यह समूह नीचे दिए गए मानदंडों को पूरा करता है:
- ब्यापार जिनकी वार्षिक टर्नओवर 1 करोड़ रुपये से अधिक है (यदि नकदी लेन‑देन कुल टर्नओवर का 5 % से कम है तो यह सीमा 10 करोड़ रुपये तक बढ़ा दी गई है)।
- डॉक्टर, वकील, आर्किटेक्ट, कॉन्सल्टेंट जैसे पेशेवर जिनकी ग्रॉस रीसिप्ट 50 लाख रुपये से अधिक है (यदि नकदी लेन‑देन न्यूनतम हैं तो यह सीमा 75 लाख रुपये तक बढ़ाई गई है)।
- सेक्शन 44AB के तहत ऑडिट के दायरे में आने वाले सभी इकाइयाँ।
विस्तारित समय‑सीमा के बावजूद, अक्टूबर महीने में कई अन्य नियामक डेडलाइन भी एक साथ टकराती हैं। जीएसटी के त्रैमासिक रिटर्न, टीडीएस फाइलिंग, कंपनी पंजीकरण (रोसी) के अपडेट और आयकर रिटर्न सभी ही महीने के अंत में जमा करने होते हैं। यहाँ तक कि दीवाली के त्योहारी सीजन की वजह से कार्य दिवस भी घट जाते हैं, जिससे कार्यभार और अधिक बढ़ जाता है।
इस चुनौतीपूर्ण माह को सफलतापूर्वक पार करने के लिये नीचे कुछ व्यावहारिक टिप्स दी जा रही हैं:
- अगले दो हफ्तों में प्रमुख दस्तावेज़ों को इकट्ठा कर एक प्राथमिक चेक‑लिस्ट बनाएं।
- ऑडिट रिपोर्ट की ड्राफ्टिंग को तेज करने के लिये अनुभवी कर‑सलाहकार या फर्म से समय‑पूर्व में संलग्न रहें।
- इ‑फाइलिंग पोर्टल पर लॉग‑इन करके टेस्ट अपलोड करके तकनीकी समस्याओं से बचें।
- गिरफ्तार डेडलाइन के पहले ही आईटीआर एवं ऑडिट रिपोर्ट दोनों को जमा करें, ताकि अंतिम मिनट में किसी अनपेक्षित त्रुटि का सामना न करना पड़े।
- यदि प्राकृतिक आपदा या अन्य आकस्मिक कारणों से किसी देरी की संभावना हो, तो तुरंत संबंधित विभाग को सूचित करके वैकल्पिक उपायों की मांग करें।
ध्यान रखें कि विस्तारित डेडलाइन के बाद भी असफलता की स्थिति में जुर्माना लागू रहेगा। सेक्शन 44AB के तहत दिये गए प्रावधानों के अनुसार जुर्माना 1.5 लाख रुपये या टर्नओवर का 0.5 % (जो भी अधिक हो) हो सकता है। इसलिए नियामक अनुपालन के लिये समय‑सारिणी बनाकर काम करना अत्यंत आवश्यक है।
टैक्स ऑडिट डेडलाइन के इस बदलाव से आशा है कि छोटे और बड़े दोनों व्यवसायों को अपने वित्तीय रिकॉर्ड को सही रूप में प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर मिलेगा, जबकि सरकार की आयकर संग्रहण प्रक्रिया में भी पारदर्शिता बनी रहेगी। आगे भी इस दिशा में हुए अपडेट को ध्यान से देखना ज़रूरी रहेगा।
टिप्पणि
वित्तीय वर्ष 2025‑26 के टैक्स ऑडिट की समय सीमा में वृद्धि को देखकर प्रशंसा योग्य कदम प्रतीत होता है। यह विस्तार पेशेवर संगठनों को पर्याप्त समय प्रदान करेगा, जिससे वे अपने दस्तावेज़ों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत कर सकेंगे। आशा है कि इससे अनुपालन दर में वृद्धि होगी और कर संग्रहण प्रक्रिया अधिक पारदर्शी बनेगी।
ऐसे ढीले‑ढाले विस्तार को स्वीकारना नैतिक दायित्वों के बादल को धुंधला कर देता है। सबको चाहिए कि वे नियमानुसार अपना काम समय पर पूरा करें, नहीं तो प्रणाली में अविश्वास भर जाएगा। देरी से न केवल जुर्माना बढ़ता है, बल्कि प्रशासनिक बोझ भी बढ़ता है। इस प्रकार की लचीलापन लंबे समय में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित कर सकती है।
सीबीडीटी द्वारा डेडलाइन बढ़ाने का निर्णय न केवल प्रशासनिक लचीलेपन को दर्शाता है, बल्कि यह करदाता एवं ऑडिटर दोनों के लिए एक व्यावहारिक राहत भी प्रदान करता है।
पहले 30 सितंबर की कठोर तिथि कई छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों को बेशकीमती संसाधनों की बर्बादी की ओर ले जा रही थी।
स्वाभाविक रूप से, जब प्रौद्योगिकी की सहायता से डेटा संग्रहण में देरी होती है, तो रिपोर्ट में त्रुटियों का जोखिम बढ़ जाता है।
इसलिए अतिरिक्त एक महीने का अंतराल उन पेशेवरों को आवश्यक समय देगा जिससे वे अपने खाता‑पुस्तकों को पुनः जांच कर सकें।
विशेष रूप से चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्मों को अब जटिल लेन‑देन की पुनरावलोकन प्रक्रिया को त्वरित करने की आवश्यकता नहीं रह गई।
यह कदम हाई कोर्ट के फैसलों के साथ संरेखित है, जो प्राकृतिक आपदाओं के कारण उपजने वाली अनिश्चितताओं को मान्यता देते हैं।
आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो, देर से फाइलिंग से जुर्माने की संभावनाएँ बढ़ती हैं, पर यह भी सच है कि उचित तैयारी से यह जोखिम न्यूनतम किया जा सकता है।
करदाता को चाहिए कि वह अपने वित्तीय डेटा को एकत्रित करने के लिए एक स्पष्ट टाइम‑टेबल बनाकर प्रारंभिक जांच कर ले।
इसी प्रकार, ऑडिटर को चाहिए कि वह क्लाइंट के साथ नियमित बैठकें रखे, जिससे कोई भी विसंगति समय रहते पकड़ी जा सके।
एफ़‑फ़ाइलिंग पोर्टल पर टेस्ट अपलोड करने की सलाह देना भी एक समझदारी भरा कदम है, जिससे तकनीकी बाधाओं से बचा जा सके।
यदि किसी प्राकृतिक आपदा या गंभीर व्यवधान की स्थिति उत्पन्न होती है, तो तुरंत आयकर विभाग को सूचना देना आवश्यक है।
वर्तमान में कई अन्य नियामक डेडलाइन भी उसी महीने में मेल खाती हैं, इसलिए समन्वित योजना बनाना अनिवार्य है।
दिवाली के उत्सव के कारण कार्य दिवस कम हो सकते हैं, पर इससे आपका काम टालना नहीं चाहिए।
अंत में, अगर समय सीमा को पार किया जाता है तो जुर्माना लागू होने की संभावना को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
सारांश में, यह विस्तार एक सकारात्मक बदलाव है, पर इसकी सफल कार्यान्वयन के लिए सभी पक्षों को सक्रिय सहयोग देना होगा।
डेडलाइन का विस्तार एक सततिकालीन दार्शनिक प्रश्न उठाता है: क्या समय ही सब कुछ है? यदि नियामक लचीलापन दिखाते हैं, तो क्या यह प्रणाली की दृढ़ता को कम करता है? यह विचारनीय है।