लॉटरी प्रणाली का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
हिमाचल प्रदेश में लॉटरी चलाने की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी, लेकिन 1996 में इसकी प्रक्रिया अस्थायी रूप से बंद हो गई। 1999 में तत्कालीन प्रीम कुमार धूमाल के नेतृत्व में बीजीपी सरकार ने लॉटरी को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि उस समय कई लोगों को बड़े पैमाने पर वित्तीय नुकसान हुआ था। उस समय Lotteries (Regulation) Act, 1998 के सेक्शन 7, 8 और 9 के तहत प्रतिबंध लागू किया गया था।
वर्षों बाद, राज्य के दुबले वित्तीय परिदृश्य ने इस प्रतिबंध को फिर से सवालों के घेरे में डाल दिया। वित्त विभाग की एक विस्तृत प्रस्तुति में बताया गया कि केरल, पंजाब, सिक्सिम जैसे राज्यों ने लॉटरी से उल्लेखनीय राजस्व कमाया है। केरल ने FY 2024‑25 में 13,582 करोड़ रुपये, पंजाब ने 235 करोड़ रुपये और सिक्सिम ने लगभग 30 करोड़ रुपये कमाए। इन आँकड़ों को देखते हुए हिमाचल प्रदेश ने इस मॉडल को अपनाने का फैसला किया।
अब सरकार ने यह लॉटरी डिजिटल रूप में चलाने की योजना बनाई है। इससे कागज के टिकेट की जरूरत नहीं रहेगी और पारदर्शिता बढ़ेगी। तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धरमानी ने कहा, "सरकारी लॉटरी स्पष्ट प्रक्रिया के तहत चलेगी, जिससे लाभ भी होगा और जनता को धोखाधड़ी से बचाया जा सकेगा।"

आर्थिक लक्ष्य और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
हिमाचल प्रदेश की कुल ऋण बोझ एक लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। साथ ही, केंद्र से मिलने वाले अनुदान में कटौती और जीएसटी मुआवज़ा बंद हो गया है, जिससे राज्य की राजस्व स्थिति अत्यंत नाज़ुक हो गई है। इस आर्थिक दबाव के मद्देनज़र, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखु के तहत बनने वाले रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी (RMC) ने लॉटरी को नई आय के स्रोत के रूप में प्रस्तावित किया।
RMC के प्रधान उपमुख्यमंत्री मुकेश आघ्निहोत्री ने बताया कि वार्षिक 50‑100 करोड़ रुपये की आय से न केवल ऋण की चुकाई में मदद मिलेगी, बल्कि भूमि-स्खलन और बाढ़ से हुई क्षति की पुनर्रचना में भी योगदान होगा। इस दिशा में आर्थिक विभाग ने छः बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
- डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से टिकेट खरीद‑बिक्री की सुरक्षा।
- हर टिकेट पर स्पष्ट मूल्य और जीत की संभावना का उल्लेख।
- परिणामों का रीयल‑टाइम अपडेट, जिससे जनता का भरोसा बनता है।
- राज्य को सीधे कर एवं लाइसेंस शुल्क से आय।
- उच्चतम स्तर की फ्रॉड‑प्रिवेंशन प्रणाली का कार्यान्वयन।
- लॉटरी से प्राप्त राशि को सामाजिक कल्याण, शिक्षा और बुनियादी डھانचे के विकास में प्राथमिकता देना।
राजनीतिक मतभेद साफ़ देखे जा रहे हैं। विपक्षी बीजीपी ने इस कदम को "सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा" कह कर टिका दिया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रीम कुमार धूमाल ने कहा कि उन्होंने 1999 में लॉटरी बंद की थी ताकि दुर्व्यवहार रोक सकें। वहीं, मुख्यमंत्री की मीडिया टीम ने इस आलोचना को "डबल स्टैण्डर्ड" कहा, क्योंकि लॉटरी कई बीजीपी-शासित राज्यों में चल रही है।
सरकार ने अभी तक लॉटरी लॉन्च की तिथि या टिकटों के मूल्य का खुलासा नहीं किया है, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि नियामक ढाँचे को कड़ाई से लागू किया जाएगा। यह भी कहा गया है कि लॉटरी के प्रॉमोटर और वितरक को लाइसेंस के तहत ही काम करने की अनुमति होगी, जिससे अनियंत्रित ऑनलाइन सट्टेबाज़ी को रोका जा सके।
यदि यह योजना सफल रहती है, तो हिमाचल प्रदेश लॉटरी को केवल राजस्व स्रोत नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यों के लिए फंड जुटाने का मंच भी माना जाएगा। राज्य के आर्थिक अभिकर्ता मानते हैं कि यह मॉडल अगले पाँच वर्षों में वित्तीय पोर्टफोलियो को संतुलित करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है।
कुल मिलाकर, हिमाचल प्रदेश लॉटरी अब एक संभावित राजस्व उत्पन्न करने वाला उपकरण बनकर सामने आई है, जो वित्तीय संकट के बीच राज्य को स्थिरता की ओर ले जा सकती है, बशर्ते इसे व्यवस्थित, पारदर्शी और नियामक ढाँचे के भीतर चलाया जाए।
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