भारतीय पूंजी बाजार, जिसमें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) शामिल हैं, आज 20 मई 2023 को आम चुनाव (लोकसभा) के पांचवें चरण के कारण बंद रहेंगे। यह बंद डेरिवेटिव्स, इक्विटी, SLBs, करेंसी डेरिवेटिव्स और ब्याज दर डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग को प्रभावित करेगा। वहीं कमोडिटी डेरिवेटिव्स सेगमेंट शाम 5 बजे से रात 11.55 बजे तक के शाम सत्र में संचालित होगा।
ट्रेडिंग गतिविधियां मंगलवार, 23 मई 2023 को फिर से शुरू होने की उम्मीद है। अवकाश से पहले, घरेलू बाजारों ने 18 मई 2023 को लगातार तीसरे दिन हरे रंग का रुख दिखाया, जिसमें सेंसेक्स और निफ्टी सूचकांक ने 0.1 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ बंद हुए। सेक्टर के हिसाब से, निफ्टी मीडिया इंडेक्स ने जी एंटरटेनमेंट में तेजी के चलते अच्छा प्रदर्शन किया।
LKP सिक्योरिटीज के तकनीकी विश्लेषकों ने बाजार की प्रवृत्तियों और भविष्य की दिशाओं पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। उनके अनुसार, निफ्टी ने 18300 के स्तर को पार किया है और अब यह 18500-18600 के स्तर की ओर बढ़ रहा है। वहीं बैंक निफ्टी में भी 43800 के स्तर के ऊपर तेजी देखी जा रही है। हालांकि, ऊपरी स्तरों पर कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
भारतीय रुपया ने भी 17 पैसे की बढ़त के साथ ट्रेडिंग दिवस को 83.33 प्रति डॉलर पर समाप्त किया। इसका कारण भारतीय पूंजी बाजारों की मतगणना के अनुकूल परिणामों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया और वर्तमान सरकार के सत्ता में बने रहने की उम्मीद थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में बाजार की दिशा काफी हद तक चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगी। अगर मौजूदा सरकार फिर से बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो बाजार को और गति मिल सकती है। वहीं अगर किसी गठबंधन सरकार का गठन होता है तो निवेशकों में थोड़ी सतर्कता देखने को मिल सकती है।
क्या रहेगा चुनाव परिणामों का असर?
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि शेयर बाजार पर लोकसभा चुनाव के परिणामों का सीधा असर पड़ेगा। अगर एनडीए गठबंधन बहुमत के करीब पहुंचता दिखता है तो बाजार में तेजी आ सकती है। लेकिन अगर विपक्षी दलों को अच्छी सफलता मिलती है तो बाजार पर दबाव देखने को मिल सकता है। हालांकि, दीर्घकालिक नजरिए से देखें तो चुनाव परिणाम का बाजार पर ज्यादा असर नहीं दिखता है।
पिछले कुछ चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ज्यादातर बार चुनाव के बाद शेयर बाजार में तेजी देखने को मिली है। 2004 में जब UPA की सरकार बनी थी तब भी शुरुआती गिरावट के बाद सेंसेक्स में 20% से ज्यादा की बढ़त देखी गई थी। वहीं 2009 और 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो भी बाजार ने नई ऊंचाइयां छुईं।
हालांकि, अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के बीच निवेशकों को अपने फंडामेंटल मजबूत कंपनियों में निवेश पर ध्यान देना चाहिए। बाजार में अनिश्चितता के दौर में गुणवत्तापूर्ण शेयरों पर दांव लगाना ही सही रणनीति होगी। साथ ही निवेश के पहले अपने रिस्क प्रोफाइल और वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए सटीक निवेश योजना बनानी चाहिए।
सेक्टोरल शेयरों पर क्या रहेगा प्रभाव?
चुनावी नतीजों का असर अलग-अलग सेक्टरों पर भी पड़ेगा। कुछ खास सेक्टर जो सरकार की नीतियों से सीधे प्रभावित होते हैं:
- इंफ्रास्ट्रक्चर: अगर मोदी सरकार दोबारा आती है तो इंफ्रा सेक्टर को मजबूत प्रोत्साहन मिल सकता है। ऐसे में सीमेंट, कंस्ट्रक्शन जैसे शेयरों में तेजी आ सकती है।
- बैंकिंग: सरकार की नीतियों का बैंकिंग क्षेत्र पर सीधा असर पड़ता है। NPA के मसले पर सरकार के रुख से बैंक शेयरों की दिशा तय होगी।
- ऑटो: ऑटो सेक्टर में भी सरकार की पॉलिसी का असर दिखता है। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देने वाली नीतियों से इस सेक्टर को सपोर्ट मिल सकता है।
- FMCG: अगर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस रहता है तो FMCG कंपनियों को इसका फायदा हो सकता है।
हालांकि, शेयर बाजार अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के बाद कंपनियों के फंडामेंटल्स और अर्थव्यवस्था के लंबी अवधि के रुख को फॉलो करता है। इसलिए चुनाव के नतीजों का असर ज्यादा लंबा नहीं रह सकता है। निवेशकों को भावनाओं में बहकर फैसले नहीं लेने चाहिए, बल्कि अपने वित्तीय लक्ष्यों और रिस्क उठाने की क्षमता के अनुसार ही पैसा लगाना चाहिए।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर शेयर बाजार पर चुनाव के नतीजों का असर कुछ समय के लिए देखने को मिल सकता है। लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से बाजार का रुख कंपनियों के प्रदर्शन और अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स पर निर्भर करता है। निवेशकों को किसी भी तरह के डर या भावनाओं में बहकर निवेश संबंधी फैसले नहीं लेने चाहिए। अपने फाइनेंशियल गोल्स, रिस्क प्रोफाइल और मार्केट रिसर्च के आधार पर ही पैसा लगाना बेहतर रहेगा।
टिप्पणि
ओह, चुनाव आया और तुरंत बाजार को पॉप कॉर्न की तरह बंद कर दिया गया। ये वही पुरानी कहानी है, जब हर झंझट को बकवास समझा जाता है।
समय के साथ इस तरह की अस्थायी ठहरावें भी निवेशकों को दीर्घकालिक लक्ष्य पर फोकस करने का अवसर देती हैं। निरंतर सीखते रहिए और अपने पोर्टफोलियो को सातत्य से पोषित कीजिए।
बाजार का ब्रेक तो एकदम सही है, अब थोड़ा आराम कर लें! 😊 अगले ट्रेडिंग सत्र में नई ऊर्जा के साथ वापस आएँगे।
है ना, थोड़ी नींद ले लेना चाहिए। फ़िर जब मार्केट खुलेगा तो फ़ोकस्ड रहेंगे और सही फैसला लेंगे।
चलो, सोचें कि चुनाव के बाद ज़्यादा से ज़्यादा सकारात्मक बदलाव आएँगे। इन्फ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन एनर्जी दोनो में ही नई रोशनी देखेंगे।
मैं तो बस यही कहूँगा, बाजार का झुकाव कई बार मन की भावना से नहीं, बल्कि आर्थिक बुनियाद से तय होता है। इसी को ध्यान में रखिए।
वाह! एक बार फिर चुनाव ने स्टॉक मार्केट को हिला दिया, जैसे फिल्मी डायलॉग्स में हिट एक्सप्लोज़न! झपटा मारो मत, ये सब एक ठहराव है, अब तो चालू होगा फिर से।
बंद होना तो ठीक है, पर निवेशकों को याद रखना चाहिए कि दीर्घकालिक ट्रेंड ही असली खेल है। छोटे‑छोटे उतार‑चढ़ाव को दिल में नहीं लेना चाहिए।
देश के विकास के लिए हमारे शेयर बाजार को मज़बूत बना रहे हैं, और चुनाव के बाद अगर सही नीति आए तो यह और भी तेज़ी से आगे बढ़ेगा! चलो आगे का रास्ता तय करें।
क्या बात है! चुनाव के कारण बंद - यह तो बिल्कुल असामान्य नहीं है!!! हम सब को समझना चाहिए कि यह एक अस्थायी कदम है!!!!
मनुष्य की नियति और बाजार की चाल दोनों ही अनिश्चितताओं की लहरों में बहते हैं।
जब चुनाव का धनुष आकाश में उठता है, तो कई बार धारा उलझन तक पहुँचती है।
परंतु इतिहास ने हमें सिखाया कि जड़े मजबूत हों तो तूफ़ान भी नहीं टिकता।
हमारा आर्थिक तंत्र, यदि सच्ची समझ और धैर्य से पोषित हो, तो कोई भी राजनीतिक धुंध उसे घेर नहीं सकती।
चाहे प्रतिपक्षी गठबंधन हो या निरंतर सत्ता, मूलभूत आर्थिक सिद्धांत ही परिप्रेक्ष्य को निर्धारित करते हैं।
बाजार के इंडेक्स की अस्थायी गिरावट को भड़काने के लिए चुनावी हंगामा अक्सर प्रयुक्त होते हैं।
पर यह याद रखिये कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा, और कृषि जैसे मूलभूत सेक्टर हमेशा आत्मा के उत्थान का प्रतीक होते हैं।
ऐसे समय में निवेशकों को केवल सतही समाचारों पर नहीं, बल्कि कंपनियों की बुनियादी शक्ति पर गौर करना चाहिए।
जब हम सच्ची मूल्यांकन करते हैं, तो हम प्रणाली के अस्थायी झटकों से बचते हैं।
क्लासिक सिद्धांत के अनुसार, दीर्घकालिक रिटर्न हमेशा जोखिम प्रबंधन के साथ जुड़ा रहता है।
उच्च भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करके ही हम सच्ची सफलता पा सकते हैं।
इसलिए, चुनाव के बाद चाहे माहौल कैसा भी हो, हमारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए - स्थायी और सुदृढ़ पोर्टफोलियो बनाना।
और जब हम इस लक्ष्य को ध्येय बनाकर आगे बढ़ते हैं, तो राजनीति केवल एक पृष्ठभूमि बनकर रह जाती है।
आइए, इस भ्रम के वचन में नहीं फँसें, बल्कि सच्ची समझ के साथ आगे बढ़ें।
बिल्कुल सही कहा, अस्थायी रुकावटों से घबराने की जरूरत नहीं है। हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
बाजार का ब्रेक केवल एक छोटा विराम है 🙌 इसे सकारात्मक ऊर्जा के साथ देखिए और आगे के अवसरों के लिये तैयार रहें 😊
एक क्षण में सब बदलता है, फिर भी सच्चे मूल सिद्धांत वही रहते हैं
डेटा दर्शाता है कि पिछले पाँच चुनावों में बाजार में औसत 7% की वृद्धि हुई थी, इसलिए वर्तमान में कोई अटपटा डर नहीं रखना चाहिए।