हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनियाभर में मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है, और 2024 में यह दिन 12 मई को पड़ रहा है। यह दिवस माताओं के असीम प्रेम, बलिदान और समर्थन को सम्मानित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत अमेरिका में 20वीं सदी के आरंभ में हुई थी, जब सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना जार्विस ने अपनी माँ की याद में इस दिन को मनाना शुरू किया। भारत में भी इस दिन को बहुत ही उत्साह और सम्मान के साथ मनाया जाता है।
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मातृ दिवस का जश्न हर साल दिल को छू जाता है। इस दिन हम अपनी माँ की अनगिनत मेहनत और प्यार को याद करते हैं। अपने अनुभव में, सबसे बड़ा उपहार उनका अडिग समर्थन है।
साँच पूछूँ तो, माँ की सराहना हर दिन करनी चाहिए, नहीं केवल एक रविवार को। बस थोड़ा सा ध्यान रखो, सब खुश रहेंगे।
मातृ दिवस की बात सुनते ही बचपन की यादें ताज़ा हो गयी। म्मा का हाथ पकडकर स्कूल जाना, वो बड़िया सुबह की हवा जैसा लग्ता था। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि वो दिन क्यूँ इतना ख़ास है, शायद उनके बिना हम अधूरे हैं। ग़लती से भी इस दिन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हर माँ को सम्मान देना हमारा फर्ज है।
बिल्कुल सही कहा, माताओं के बिना समाज अधूरा है हम सभी को यह समझना चाहिए कि उनका योगदान किस हद तक है।
इतिहास के पन्नों में जब मातृ दिवस की उत्पत्ति का विश्लेषण किया जाता है, तो स्पष्ट रूप से देखा जाता है कि यह प्रवृत्ति सामाजिक संरचना के पुनर्मूल्यांकन का प्रतीक है; अतः इसे केवल एक उत्सव के रूप में सीमित नहीं किया जा सकता। यह एक गहरा सांस्कृतिक विमर्श प्रस्तुत करता है, जो मातृत्व के सार्वभौमिक महत्व को रेखांकित करता है।
देखो भाई, कुछ आसान आइडिया है: माँ को घर पर स्पा बनाके आराम दो, या उनका पसंदीदा खाने का थाली तैयार करो। इससे उनका दिल खुश हो जायेगा, वाक़ई में।
माता के बिना तो जिंदगी अधूरी है, इसलिए इस दिन उनके लिये छोटे-छोटे सरप्राइज़ करना चाहिए :)
मातृ दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि यह हमारे सामाजिक ताने-बाने में माँ की स्थिति को समझने का अवसर है।
इतिहास में देखा जाए तो इस अवधारणा की जड़ें 19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई जाती हैं।
अन्ना जार्विस ने अपनी माँ के स्मरण में इस दिन को स्थापित किया, जिसे बाद में विश्व स्तर पर अपनाया गया।
भारत में इस दिवस को 1950 के दशक से बढ़ती जागरूकता के साथ मनाया जाता रहा है।
विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रीति‑रिवाज़ विकसित हुए, जैसे कि कुछ जगहों पर माँ को फूलों की मुर्हू देना और कुछ में सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करना।
ये आयोजन सिर्फ औपचारिक नहीं होते, बल्कि उनमें स्थानीय कलाकारों द्वारा मातृ प्रेम को दर्शाने वाले नाटक और गीत भी शामिल होते हैं।
कई स्कूलों में बच्चों को माँ को समर्पित लेख लिखने और चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
यह पहल बच्चों में सम्मान, अभद्रता और पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करती है।
सामाजिक प्लेटफॉर्म पर भी इस दिन पर माँ को समर्पित वीडियो और पोस्टों की भरमार देखी जाती है।
डिजिटल युग में यह एकत्रित भावनाएं अधिक त्वरित और व्यापक रूप से फैलती हैं।
इसके अलावा, कई NGOs इस दिन का उपयोग महिला सशक्तिकरण और बाल अधिकारों के संदेश को प्रसारित करने के लिए भी करते हैं।
मातृ दिवस के विशेष कार्यक्रमों में अक्सर स्थानीय हस्तशिल्प और भोजन की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है।
यह न केवल माँ को सम्मान देता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहित करता है।
अंत में, यह याद रखना आवश्यक है कि माँ का प्यार निरंतर रहता है, और हमें इसे सिर्फ एक दिन में सीमित नहीं करना चाहिए।
इसलिए, प्रत्येक दिन को मातृ सम्मान का अवसर बनाकर हम एक अधिक मानवीय समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
बहुत उपयोगी जानकारी, धन्यवाद।
जैसे हर साल शत्रु देश की दुष्ट योजना होती है, वैसे ही मातृ दिवस पर भी कुछ छुपा होता है 🤔🇮🇳। हम सभी को सतर्क रहना चाहिए! 😡
माता के प्रति सम्मान हमारे भारतीय संस्कृति में गहराई से जुड़ा है, इसलिए इस दिन को विशेष बनाना स्वाभाविक है। आप सब को धन्यवाद कि आपने इस पर चर्चा की।
हूँ, मातृ दिवस पर फूल लाने से ही सब समाधान हो जाएगा।
आपकी बात बिल्कुल सही है; मातृ दिवस को सामाजिक जागरूकता के साथ जोड़ना आवश्यक है, और इस दिशा में छोटे-छोटे कदम भी बड़े परिवर्तन लाते हैं।