अल्पकालिक पूँजी लाभ – क्या है और कैसे बचें?
जब भी आप शेयर, म्यूचुअल फंड या किसी अन्य वित्तीय परिसंपत्ति को खरीद‑बेच करते हैं, तो उस लेन‑देन से मिलने वाला लाभ अल्पकालिक पूँजी लाभ, ऐसा कर योग्य आय जो एक वर्ष या उससे कम समय में प्राप्त हुई हो. इसे अक्सर शॉर्ट‑टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है। भारत में इस पर 15% का स्थिर कर लगता है, जो आपके कुल आय में जोड़ दिया जाता है।
अब बात करते हैं शेयर बाजार, इक्विटी, डेरिवेटिव और अन्य ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म का समग्र माहौल का। जब आप शेयर को दो‑तीन महीने के भीतर बेचते हैं, तो मिलने वाला लाभ सीधे अल्पकालिक पूँजी लाभ में गिना जाता है। इसलिए ट्रेडिंग के दौरान आपसे वही कर लिया जाता है, चाहे आपका कुल आय कितना भी बड़ा हो। यह नियम म्यूचुअल फंड के इक्विटी ओरिएंटेड फंड्स पर भी लागू होता है, क्योंकि फंड यूनिट्स को बेचने पर भी यही गणना लगती है।
अल्पकालिक पूँजी लाभ को समझने के मुख्य बिंदु
पहला बिंदु है कर नियम, वित्तीय वर्ष में लागू आयकर धारा और दरें। इन नियमों में यह निर्धारित है कि आप मूलधन लागत (cost of acquisition) कैसे निकालेंगे, किसे ‘विक्री मूल्य’ माना जाएगा और किसे ‘छूट’ मिल सकती है। उदाहरण के लिए, जब आप समान शेयर को दो बार बेचते‑खरीदते हैं, तो पहले की बिक्री‑की‑लागत नई खरीद के साथ मिलाकर ‘सतत पूँजी लागत’ बनती है, जिससे कर‑बोझ कम हो सकता है।
दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है म्यूचुअल फंड, प्रोफेशनल मैनेजर द्वारा संचालित सामूहिक निवेश योजनाएँ। इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिट्स को यदि आप एक वर्ष से कम समय में बेचना चुनते हैं, तो उसकी सौदा राशि भी अल्पकालिक पूँजी लाभ के अधीन रहती है। लेकिन अगर फंड में आपके पास कई लॉट्स हैं, तो “FIFO” (First‑In‑First‑Out) नियम लागू करके आप सबसे पुराने लॉट को पहले बेचकर कर‑बचत कर सकते हैं।
तीसरा पहलू है निवेश योजना, लक्ष्य‑आधारित पोर्टफ़ोलियो बनाकर दीर्घकालिक एवं अल्पकालिक दोनों लाभ प्राप्त करने की रणनीति। सही योजना में आप अल्पकालिक ट्रेड को उच्च तरलता वाले स्टॉक्स में सीमित रख सकते हैं, जबकि मुख्य पूँजी को लम्बी अवधि के बढ़ते स्टॉक्स या बॉन्ड में लगा सकते हैं, जिससे कुल कर‑दायित्व में संतुलन बना रहता है। कई निवेशक ‘स्ट्रेटेजिक एग्ज़िट’ अपनाते हैं – यानी तय समय‑सीमा के बाद ही लाभ निकालते हैं, जिससे अल्पकालिक पूँजी लाभ की दर से बचा जा सके।
इन तीनों बिंदुओं को जोड़ते हुए एक आसान समीकरण बनता है: अल्पकालिक पूँजी लाभ = बिक्री मूल्य – मूलधन लागत – कोई लागू छूट. यह गणना टैक्स रिटर्न फॉर्म 26AS या आयकर रिटर्न में ‘शेड्यूल CG’ में करनी होती है। कई बार निवेशकों को अपना ‘ट्रेडिंग स्टेटमेंट’ और ‘बैंक स्टेटमेंट’ एक साथ लाकर यह पता लगाना पड़ता है कि कितना कर देना है, इसलिए दस्तावेज़ीकरण बहुत महत्वपूर्ण है।
अब आप सोच रहे होंगे कि इसकर को कम कैसे किया जाए? यहाँ दो तेज़ टिप्स हैं: 1) ट्राय‑टैक्स्ली स्टीयरिंग – यानी स्टॉक्स को एक साल से थोड़ा अधिक रखने पर कर दर कम (10% या 20% के स्लैब) हो जाती है; 2) कर‑क्रेडिट या डिडक्शन का लाभ उठाना – जैसे कि सेक्शन 54EC के तहत बुनियादी ढांचे के बॉण्ड में निवेश करने से पूँजी लाभ पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।
इन रणनीतियों का उपयोग करके कई निवेशकों ने अपनी वार्षिक कर‑दायित्व को 30%‑40% तक घटा दिया है। हमारे साइट पर नीचे दी गई खबरों में आप देखेंगे कि कैसे CBDT ने टैक्स ऑडिट डेडलाइन बढ़ाई या Sun Pharma और ITC के शेयर की कीमतों में उतार‑चढ़ाव कर‑कैल्कुलेशन को प्रभावित करता है। इन केस स्टडीज़ को पढ़कर आप अपने अल्पकालिक पूँजी लाभ को मापने और नियोजित करने के बारे में बेहतर समझ पाएँगे।
आगे चलकर आप यहाँ विभिन्न लेखों में अल्पकालिक पूँजी लाभ से जुड़ी नवीनतम नियम, टैक्स‑सेविंग टिप्स, और निवेशकों के वास्तविक अनुभव पढ़ेंगे। चाहे आप शेयर ट्रेडर हों, म्यूचुअल फंड निवेशक हों, या सिर्फ अपने वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करने की सोच रहे हों – यह संग्रह आपके लिए एक ठोस मार्गदर्शक बनेगा।
CBDT ने फिर से कहा कि सेक्शन 87A के तहत अल्पकालिक पूँजी लाभ पर कोई कर रिबेट नहीं मिलेगा। बजट 2025 में इस बात को साफ़ किया गया था, परन्तु कई करदाताओं ने अभी‑तक रिबेट ले लिया था। आयकर विभाग अब उन रिटर्नों को सुधार कर कर मांग जारी करेगा और 31 दिसंबर 2025 तक भुगतान करने पर ब्याज माफ़ करेगा। यह नियम कई आम लोगों को सीधे प्रभावित करेगा, क्योंकि उनके रिटर्न में गलती से रिबेट जोड़ दिया गया था।
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