CBDT – भारत का कर नीति केंद्र

जब भारत में सीधा कर प्रशासन की बात आती है, तो सबसे पहले दिमाग में CBDT, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स, जो आयकर, दिवालियापन और अन्य प्रत्यक्ष करों की नीति बनाता और लागू करता है, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड आता है। यह बोर्ड वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है और आयकर अधिनियम, 1961 जैसे प्रमुख कानूनों को संशोधित करके करदाताओं और सरकार के बीच संतुलन बनाता है। अंत में, CBDT की निर्णयों से हर व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट करदाता की टैक्स बोझ और रिफंड प्रक्रिया सीधे प्रभावित होती है।

CBDT के काम को समझने के लिए दो मुख्य संबंधित इकाइयों पर नज़र डालते हैं। पहला है आयकर अधिनियम, भारत में प्रत्यक्ष करों का प्रमुख विधायी आधार, जो आय, संपत्ति और लेन‑देन पर कर लगाता है। दूसरा है वित्त मंत्रालय, केंद्रीय सरकार का वह विभाग जो बजट, राजस्व संग्रह और आर्थिक नीति बनाता है, और CBDT को रणनीतिक दिशा देता है। इन दोनों के बीच एक स्पष्ट त्रि-रिश्ता चल रहा है: वित्त मंत्रालय नीति निर्धारित करता है, आयकर अधिनियम इसे कानूनी रूप देता है, और CBDT इन नीतियों को कार्यान्वित करता है। इसके अलावा, करदाता, व्यक्तिगत और व्यावसायिक इकाई जो आय या लाभ पर कर अदा करती है भी इस त्रीआधार का अभिन्न हिस्सा है—उनकी फाइलिंग और अनुपालन सीधे CBDT के नियमों से जुड़ी होती है।

CBDT के प्रमुख कार्य और प्रभाव

CBDT का मुख्य कार्य कर नीति बनाना, कर कानूनों को अपडेट करना और उनका सुगम कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है। यह बोर्ड आयकर रिटर्न, टैक्स ऐडवांस, और डिप्रेशन देनदारी जैसी प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाकर करदाता अनुभव को बेहतर बनाता है। उदाहरण के तौर पर, ऑनलाइन पोर्टल ‘ई‑फाइल’ के माध्यम से रिटर्न दाखिल करना, रिफंड की गति बढ़ाने के लिए स्वचालित प्रोसेसिंग, और एसटीपी (सॉफ़्टवेयर टूल) के जरिए टैक्स चोरी पर निगरानी रखना—इन सब में CBDT की केंद्रीय भूमिका स्पष्ट है।

जब वित्त मंत्रालय का बजट प्रस्तुत होता है, तो अक्सर कई नई आयकर दरें और छूटें प्रस्तावित होती हैं। ये प्रस्तावित बदलाव CBDT द्वारा विभिन्न आर्थिक संकेतकों, जैसे जीडीपी, महंगाई और विदेशी निवेश, के आधार पर मूल्यांकन किए जाते हैं। फिर, CBDT इन प्रस्तावों को विश्लेषण कर, सार्वजनिक परामर्श के बाद अंतिम रूप देता है। इस चक्र में कर नीति की पारदर्शिता और स्थिरता बनती है, जिससे राजस्व संग्रह में वृद्धि और करदाता विश्वास में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, CBDT अंतर्राष्ट्रीय टैक्स डबल टैक्स एग्रीमेंट (DTAA) की निगरानी करता है, जिससे विदेशी आय पर दोहरा कर नहीं लगाया जाता।

एक और महत्वपूर्ण पहलू है अनुपालन प्रोत्साहन। CBDT नियमित रूप से ‘वॉलंटरी डिस्क्लोजर स्कीम’ (VDS) जैसी योजनाएँ लॉन्च करता है, जो करदाताओं को छिपी हुई आय को वैध रूप से घोषित करने की सुविधा देती हैं, बदले में जुर्माना रियायत मिलती है। इस तरह के उपाय न केवल राजस्व में इजाफा करते हैं, बल्कि कर सजगता को भी बढ़ाते हैं। साथ ही, CBDT डिजिटल टेक्नोलॉजी, जैसे डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉकचेन, को अपनाकर टैक्स इवेसन को रोकता है और वास्तविक‑समय निगरानी को सक्षम बनाता है।

सरकार की आर्थिक योजनाओं के साथ तालमेल बिठाते हुए, CBDB (माफ़ कीजिए, CBDT) अक्सर कर पुनरावृत्ति, सिटीज़न शिप टैक्स और स्टॉक एक्सचेंज ट्रांजेक्शन टैक्स जैसे नए आय स्रोतों की संभावनाओं पर भी काम करता है। यह दर्शाता है कि CBDT सिर्फ मौजूदा आयकर ढाँचे को संभालने तक सीमित नहीं, बल्कि भविष्य के वित्तीय परिदृश्य को तैयार करने में भी सक्रिय है।

अब आप देखेंगे कि नीचे की पोस्ट सूची में CBDT से जुड़ी ताज़ा खबरें, नीति बदलाव, करदाता सलाह और तकनीकी अपडेट कैसे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। चाहे आप टैक्स फाइलिंग की तैयारी कर रहे हों, नए नियमों को समझना चाहते हों, या वित्त मंत्रालय के बजट का असर जानना चाहते हों—यहां आपको वही जानकारी मिलेगी जो आपके सवालों का जवाब दे सके। आगे पढ़िए और जानिए कैसे CBDT की हर एक पहल आपके टैक्स जीवन को आसान बना सकती है।

CBDT ने टैक्स ऑडिट डेडलाइन बढ़ाई: अब 31 अक्टूबर 2025 तक

CBDT ने टैक्स ऑडिट डेडलाइन बढ़ाई: अब 31 अक्टूबर 2025 तक

सीबीडीटी ने आयकर वर्ष 2025‑26 के लिये टैक्स ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने की अंतिम तिथि को 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 अक्टूबर 2025 कर दी है। यह कदम पेशेवर संगठनों और उच्च न्यायालयों की माँगों के बाद उठाया गया। बढ़ती व्यापारिक बाधाओं, बाढ़ और मौसमी चीनी‑दीपावली अवधि को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया गया। अब ऑडिट रिपोर्ट और आयकर रिटर्न दोनों एक ही माह के अंत में जमा करने होंगे, जिससे अक्टूबर महिना व्यस्त रहेगा। विलंब करने पर जुर्माना 1.5 लाख रुपये या टर्नओवर का 0.5% तक हो सकता है।

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CBDT ने फिर से कहा कि सेक्शन 87A के तहत अल्पकालिक पूँजी लाभ पर कोई कर रिबेट नहीं मिलेगा। बजट 2025 में इस बात को साफ़ किया गया था, परन्तु कई करदाताओं ने अभी‑तक रिबेट ले लिया था। आयकर विभाग अब उन रिटर्नों को सुधार कर कर मांग जारी करेगा और 31 दिसंबर 2025 तक भुगतान करने पर ब्याज माफ़ करेगा। यह नियम कई आम लोगों को सीधे प्रभावित करेगा, क्योंकि उनके रिटर्न में गलती से रिबेट जोड़ दिया गया था।

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